संपूर्ण पूजन विधान
संपूर्ण पूजन विधान
शैलपुत्री भी प्रकाशरूप परम शिव के सानिध्य के बिना प्रकटित नहीं होती। अतः प्रथम नवरात्र में मां शैलपुत्री के इस व्रत में भगवान सदाशिव का भी ध्यान हो जाता है।
शैलपुत्री ने घोर आराधना करके प्राणनाथ रूप में सदाशिव का वरण किया था। यही कारण है कि शैलपुत्री की आराधना से साधक की इच्छाशक्ति में दृढ़ता का आविर्भाव होता है। साधक अपनी अहंकाररहित दृढ़ इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त करता है।
दुर्गा मां का नवरात्र में स्थापना व पूजन
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा की स्थापना व पूजन का विधान है। मां दुर्गा की स्थापना व पूजन के उपरांत उनमें मां शैलपुत्री का आविर्भाव कराकर माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। माता दुर्गा की स्थापना में पूजन पहले ही दिन होगा और उसे मूर्ति का स्पर्श नहीं किया जाएगा । और बाकी दिनों में तिथि वा माता के आगमन के अनुसार पूजन किया जाएगा। यदि तिथि में वृद्धि हो जाती है तो पहले दिन ही पूजन होगा यदि तिथि घट जाती है तो दोनों माता का एक ही दिन पूजन किया जाएगा इसके लिए आप पंचांगों का सहारा ले सकते हैं।
इसलिए पहले हम मां दुर्गा कीसपना वह पूजन बता रहे हैं। मां भगवती की पूजा मुख्य रूप से अर्थात तीन उपचारों द्वारा की जाती है-
(1) पञ्चोपचार विधि
1. गंध, 2. पुष्प, 3. धूप, 4. दीप, 5. नैवेद्य ।
इस उपचार विधि का प्रयोग विशेष परिस्थिति; जैसे- समय कम होने पर, यात्रा में, प्रवास में, भीड़भाड़वले बड़े पूजा स्थलों व निर्धनता में सामान्य रूप में किया जाता है।
(ख) दसोपचार विधि
1. पाच, 2. अर्घ्य, 3. आचमन, 4. स्नान, 5. वस्त्र निवेदन, 6. गन्ध, 7. पुष्प, 8. धूप, 9. दीप, 10. नैवेद्य।
(ग) षोडसोपचार अर्थात सोलह उपचार विधि
1. पाद्य, 2. अर्घ्य, 3. आचमन, 4. स्नान, 5. वस्त्र, 6. आभूषण, 7. गन्ध, 8. पुष्य, 9. धूप, 10. दीप, 11. नैवेद्य, 12. आचमन, 13. ताम्बूल, 14. स्तवपाठ, 15. तर्पण, 16. नमस्कार।
पूजा सामग्री
1. संकल्प
2. सुवाषित जल के दो लोटे (जिसमें से एक कलश स्थापना की तरह कार्य करेगा। दूसरा पूजा में बार-बार जल के लिए।) 3. शुद्ध जल का एक लोटा।
4. चंदन
5. पुष्प या फूल (पूज्य देवों की पूजा में उपयोग होने के अनुसार) व पुष्पमाला (देवों की संख्या के अनुसार)
6. दूब घास
7. तुलसी और मंजरी (केवल विष्णु पूजन या विष्णु पचायतन के लिए)
8. दीपक (संख्या पूजन के अनुसार)
9. घी (घृत) य तेल
10. पंचामृत स्नान के लिए
दूध, दही, घी, मधु (शहद) और शर्करा
11. वस्त्र व उपवास्त्र
12. यज्ञोपवीत (देवों की पूजन के अनुसार)
13. नैवेद्य अर्थात मिठाई
14. ऋतु फल
15. ताम्बुल (पान' सुपारी' लौंग व हरी इलायची)
16. दक्षिणा
17. कपूर
पूजन परंभ
1. आवाहन
(यदि पञ्चदेवकी मूर्तियाँ न हों तो अक्षतपर इनका आवाहन करे। प्रतिष्ठित मूर्ति, शालग्राम, बाणलिङ्ग, अग्नि और जलमें आवाहन नहीं किया जाता। इसकी जगह पुष्पाञ्जलि दी जाती है।)
2. आसन
3. पाद्य,
4. अर्घ्य,
5. आचमन,
4. स्नान व स्नानांते आचमनम ,
(क) पंचामृत स्नान व स्नानांते आचमनम
(ख) गंधोदक स्नान व स्नानांते आचमनम
(ग) शुद्धोदक स्नान व स्नानांते आचमनम
5. वस्त्र वस्त्रानते आचमनम, यज्ञोपवीत यज्ञोपवीतानते आचमनम
6.
(क) चंदन
(ख) हरिद्रा चूर्ण
(ग) कुमकुम
(घ) सिंदूर
(ड) कज्जलं (काजल)
(च) दुर्वांकुर (दूब घास)
(छ) बिल्व पत्र
6. आभूषण आभूषणानते आचमनम
9. पुष्य
(क) नानापरिमल दव्य (अबीर, गुलाल वह हल्दी चूर्ण)
(ख) सौभाग्य पटी का समर्पण
10. धूप,
11. दीप,
12. नैवेद्य, नैवेद्यांनते आचमन,
13. ताम्बूल,
14. आरती दीप आरती अथवा कपूर आरती करें, आरती उपरांत आरती का जल से शीतलन, अब दोनों हथेलियोंसे आरती ले। और उपस्थित लोगों को भी आरती लेने दें। हाथ धो ले।
15. शंख भ्रामण केवल विष्णु और लक्ष्मी पूजन में। शंख के जल का अपने ऊपर और लोगों के ऊपर छिड़कना।
(जलसे भरे शङ्खको पाँच बार भगवान्के चारों ओर घुमाकर शङ्खको यथास्थान रख दे। भगवान्का अँगोछा भी घुमा दे । शङ्खके जलको अपने ऊपर तथा उपस्थित लोगोंपर छिड़क दे।)
16. परिक्रमा (चार बार परिक्रमा करें। यदि स्थान में हो तो अपने स्थान पर ही चार बार घूम जाए)
17. प्रदक्षिणा
18. मंत्र पुष्पांजलि
19. नमस्कार
20. भक्तों को शतांश प्रदान
नमस्कार के उपरांत विष्वक्सेन, शुक आदि महाभागवतोंको नैवेद्यका शतांश निर्माल्य जलमें दे। इन श्लोकोंको पढ़कर या बिना पढे भी जलमें संतोंके उद्देश्यसे निर्माल्य दे दे। भगवान और भक्तमें अन्तर नहीं होता। अतः उत्तम पक्ष यह है कि इन संतोंका नामोच्चारण हो जाय।
21. चरणामृत-पान
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।
विष्णुपादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ॥
(चरणामृतको पात्रमें लेकर ग्रहण करे। सिरपर भी चढ़ा ले।)
22. क्षमा-याचना
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ।
यत्पूजितं मया देव ! परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम ।
तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर ।।
(इन मन्त्रोंका श्रद्धापूर्वक उच्चारण कर अपनी विवशता एवं त्रुटियोंके लिये क्षमा-याचना करे ।)
23. प्रसाद-ग्रहण -
भगवान्पर चढ़े फूलको सिरपर धारण करे। पूजासे बचे चन्दन आदिको प्रसादरूपसे ग्रहण करे।
24. अर्पण या समर्पण
अन्तमें निम्नलिखित वाक्य पढ़कर समस्त कर्म भगवान्को समर्पित कर दे -
ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु ।
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः ।
जल का उपयोग
पाद्य, आचमन, स्नान व पंचामृत स्नान के लिए, हस्त प्रक्षालन, शंकर में बर्गर रखने के लिए, आरती के बाद जल से दीपक का जल से शीतलन, शंख के जल का अपने ऊपर और लोगों के ऊपर छिड़कना।
आवाहन
१-
7. पुष्पांजलि पुष्पद में लेकर
पुष्पाञ्जलि - 'ॐ शिवविष्णुसूर्यदुर्गागणेशेभ्यो नम:। पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
मन्त्र नीचे दिया जाता है। निम्न कोष्ठकके अनुसार देवताओंको स्थापित करे -
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