माता कालका जी मंदिर
माता कालका जी
भगवती के दिल्ली स्थित इस भवन का इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि इन्द्रप्रस्थ की स्थापना के समय महाराज युधिष्ठिर के अनुरोध पर भगवान श्री कृष्ण ने माता जी के इस सिद्ध पीठ की स्थापना की थी। माता के इस भवन को कुछ लोग इन्द्रप्रस्थ की देवी का स्थान कहते हैं।
महाभारत के युद्ध में विजय के पश्चात् पुनः महाराज युधिष्ठिर ने यहां पर भगवती का पूजन एवं यज्ञ किया था। कालान्तर में यह स्थान 'जयन्ती काली' के सिद्ध पीठ के नाम से विख्यात हुआ। कुछ विद्वान इसे सूर्यकूट निवासिनी का दरबार मानते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में अरावली की इन पहाड़ियों को सूर्यकूट पर्वत का नाम दिया गया है। संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध विद्वान अरुणदेव वर्मन ने अपनी पुस्तक सूर्य शतक में यहां का वर्णन किया है और कालिका माई की वन्दना करते हुए लिखा है:
ओम् श्री कालिके शुभदे देवि सूर्यकूटनिवासिनी ।
त्वम् देवि महामाये, विश्वरूपे नमोऽस्तुते।।
12 दरवाजों से युक्त माता का यह भवन अष्टकोण पर तान्त्रिक विधि से बना हुआ है। इसके बाहर की परिक्रमा में 36 दरवाजे हैं। मन्दिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में है। मन्दिर के सामने बाहर की परिक्रमा के सामने बाहर की परिक्रमा से सटा हुआ शंकरजी का मन्दिर है और उत्तर दिशा में गणेशजी की मूर्ति है। मन मंदिर की मूर्ति के पीछे कुछ दूरी पर भैरवजी तथा हनुमान जी के प्राचीन मन्दिर हैं।
मन्दिर के सामने की ओर मुख्य द्वार में लगभग 14 फुट की दूरी पर सिंहों की दो प्रतिमाएँ और उनमें ऊपर 84 घण्टे लगे हुए हैं। आगे यज्ञशाला है।
ऐसा कहा जाता है कि भरतपुर के महाराज सूरजमल ने श्रावण शुक्ल 5 सम्वत् 1786 विक्रम को दिल्ली विजय के पूर्व भगवती की पूजा की थी और विजय के पश्चात् भवन का निर्माण करवाया और कई धर्मशालायें तथा कई चबूतरे बनवाए जो महाराज सूरजमल की विजय के स्मृति चिन्ह माने जाते हैं। महाराज सूरजमल के परिवार के श्री केदार सिंह का नाम भी माता के भवन के इतिहास से जुड़ा हुआ है।
आजकल यहां पर भारद्वाज ब्राह्मण परिवार पूजा में रत हैं।
एक बार सम्वत् 1779 वि. में जब राजाराम वर्मा माता के दरबार में पधारे, तो उन्होंने यहाँ पर 'ललिता' यज्ञ किया और 84 घण्टे माताजी की सेवा में भेंट किए थे। कुछ लोगों का कहना है कि इस भवन का निर्माण महाराज अनंगपाल द्वारा कराया गया था। वास्तव में माता भवन के चारों ओर बावड़ी, तालाब और इमारतों के खण्डहर मिलते हैं, उनसे पता चलता है कि माता का यह स्थान बहुत प्राचीन है और यहाँ पर हर युग में भवन निर्माण और उनकी मरम्मत का कार्य चलता रहता है।
इब्नबतूता मंदिर को देखकर कहते हैं कि बहुत दूर-दूर से माता के भक्त अपनी मनौतियाँ मनाते हुए गाते बजाते हुए हृदय में अपार हर्ष और उल्लास के साथ भावविभोर होकर मन्दिर की ओर अपनी रंग-बिरंगी वेषभूषा में बढ़ रहे हैं। यह दृश्य कितना हृदयस्पर्शी हैं, इसको वाणी से बयान नहीं किया जा सकता। उनकी अपार श्रद्धा और सच्ची भक्ति के प्रति मेरा सिर झुकता है।
मन्दिर के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर बाहरी परिक्रमा से सटा हुए एक छोटा सा शिवालय है। कहा जाता है कि जिस समय माता कालिकाजी के मन्दिर का निर्माण हो रहा था तो ऐसा अनुभव किया कि इस स्थान से शिवालय को हटा दिया जाए। इस उद्देश्य से शिवलिंग को खोदकर निकालने का प्रयास किया और बहुत गहराई तक खोदने पर भी शिवलिंग का कोई सिरा नहीं मिला और निकालना सम्भव नहीं हो सका। दूसरी और माता के भवन निर्माण में ऐसी रुकावटें पैदा हो गई, जिससे भवन निर्माण कार्य ठप्प हो गया। ऐसी स्थिति में भवन निर्माताओं को बड़ी चिन्ता हुई और उन्होंने माताजी को मनाने के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान करवायें, जिससे माता ने प्रसन्न होकर भवन निर्माण कर्त्ताओं को स्वप्न में यह आदेश दिया कि मेरे भवन को बनाने से पहले यह शिव मन्दिर यहीं बनना है। अतएव ऐसा किया गया तो माता का भवन शीघ्र तैयार हो गया कोई कठिनाई सामने नहीं आई।
इस सिद्धपीठ में माता का स्मरण ध्यान, पूजा उपासना, कीर्तन, जागरण युगों युगों से होता आया है और युगों युगों से माता अपने भक्तों की मनोकामनायें पूरी करती आ रही है। उनके शत्रुओं का नाश करती रही हैं, उनके रोग दूर करती रही है। उनके शुभ कार्यों के विघ्नों और बाधाओं का निवारण करती रही है। उनके जीवन में सुख-शान्ति समृद्धि और सद्ज्ञान की वृद्धि करती रही है।
कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ में निम्नलिखित मन्त्रों के अनुष्ठान का चमत्कारी प्रभाव होता है
ॐ जयन्ती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नमोऽस्तुते ।।
सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ||
ॐ श्री कालिके शुभदे देवि, सूर्यकोटि निवासिनी ।
त्वम् देवि महामाये, विश्वरूपे नमोस्तुते ॥
माता का यह दरबार प्रात: 4 बजे से रात्रि के 1 बजे तक सभी भक्तों के लिए खुला रहता है। यहाँ प्रात: और सायंकाल दोनों समय माता का श्रृंगार एवं आरती होती है।
Comments
Post a Comment