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महिषासुर का जन्म और कथा

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महिषासुर का जन्म और कथा बहुत समय पहले दानव दनु के वंश मे रम्भ और क्रम्भ नामक असुर जन्में । (दैत्य, दानव और राक्षस अलग-अलग है ) दोनो भाई बालपन से ही शक्तिशाली थे । अपनी शक्तियों को और प्रबल करने के लिये दोनो ने तप करने का संकल्प करा । दानव क्रम्भ ने वरुण देव को प्रसन्न करने के लिये जल मे कठिन तप आरंभ करा । उसके संकल्प और कठिन तप से देवराज इन्द्र घबरा गये । उन्होने मकर का रूप धारण करा और क्रम्भ का वध कर दिया । यह देख कर रम्भ ने अग्नी देव की कठिन साधना शुरु कर दी । देवराज ने रम्भ का वध करने के लिये अनेक योजनायें बनाई पर सफ़ल नही हो सके । तप सफ़ल रहा और अग्नी देव प्रकट हो गये । रम्भ ने विचित्र वरदान मांगा ।  “हे अग्नी देव ! मुझे शक्ती के साथ ऐसा वरदान दीजिये की मेरी मौत का कारण सिर्फ़ कोई मरा हुआ व्यक्ती ही बने। “ अग्नी देव ने उसे यह वरदान सहर्ष दे दिइया । परन्तु रम्भ इससे सन्तुष्ट नही हुआ ।  उसने आगे बोला “ हे अग्नी देव मुझे यह वरदान भी दीजिये की मुझे तेज प्रतापी पुत्र का पिता बनने का गौरव प्राप्त हो ।“ अग्नी देव ने रम्भ को यह वरदान भी सहर्ष दे दिया ।  अग्नी देव ने कहा “हे रम्भ...

इन नौ औषधियों में वास है नवदुर्गा का

नवरात्रि विशेष  इन नौ औषधियों में वास है नवदुर्गा का 〰🌼〰🌼〰 इन नौ औषधियों में वास है नवदुर्गा का मां दुर्गा नौ रूपों में अपने भक्तों का कल्याण कर उनके सारे संकट हर लेती हैं।  इस बात का जीता जागता प्रमाण है, संसार में उपलब्ध वे औषधियां,जिन्हें मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के रूप में जाना जाता है। नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया। चिकित्सा प्रणाली का यह रहस्य वास्तव में ब्रह्माजी ने दिया था जिसे बारे में दुर्गाकवच में संदर्भ मिल जाता है। ये औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली हैं।  शरीर की रक्षा के लिए कवच समान कार्य करती हैं। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जी सकता है। आइए जानते हैं दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है। १ प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़👉 नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकारकी समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी)...

संपूर्ण पूजन विधान

संपूर्ण पूजन विधान महामाया जगज्जननी को शैलराज अर्थात पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के  कारण देवी जगदम्बा 'शैलपुत्री' कहलाईं। माता शैलपुत्री आद्यशक्ति, सर्वतत्त्वमयी  प्रपञ्चरूपा, तत्त्वातीत, नित्या, परमानन्द स्वरूपिणी तथा चराचर जगत् की बीज स्वरूपा हैं। आद्यशक्ति का आश्रय लिये बिना भगवान शिव का आत्मज्ञान नहीं होता। शैलपुत्री भी प्रकाशरूप परम शिव के सानिध्य के बिना प्रकटित नहीं होती। अतः प्रथम नवरात्र में मां शैलपुत्री के इस व्रत में भगवान सदाशिव का भी ध्यान हो जाता है।  शैलपुत्री ने घोर आराधना करके प्राणनाथ रूप में सदाशिव का वरण किया था। यही कारण है कि शैलपुत्री की आराधना से साधक की इच्छाशक्ति में दृढ़ता का आविर्भाव होता है। साधक अपनी अहंकाररहित दृढ़ इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त करता है।  दुर्गा मां का नवरात्र में स्थापना व पूजन नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा की स्थापना व पूजन का विधान है। मां दुर्गा की स्थापना व पूजन के उपरांत उनमें मां शैलपुत्री का आविर्भाव कराकर माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। माता दुर्गा की स्थापना ...

002. द्वितीय अध्याय (दुर्गा सप्तशती हिन्दी पाठ)

अथ श्रीदुर्गासप्तशती द्वितीय अध्याय  ★ देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध।★ ॥विनियोगः॥ ॐ - मध्यम चरित्रके विष्णु ऋषि, महालक्ष्मी देवता, उष्णिक् छन्द, शाकम्भरी शक्ति, दुर्गा बीज, वायु तत्त्व और यजुर्वेद स्वरूप है। श्रीमहालक्ष्मीकी प्रसन्नता लिये मध्यम चरित्रके पाठमें इसका विनियोग है। महिषासुर-मर्दिनी भगवती महालक्ष्मीका का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है: ।। ध्यान।। मैं कमलके आसनपर बैठी हुई प्रसन्न मुखवाली महिषासुर-मर्दिनी भगवती महालक्ष्मीका भजन करता (करती) हूँ, जो अपने हाथोंमें अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड़ग, ढाल, शंख, घण्टा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं। ॐ चण्डीदेवी को नमस्कार है। मार्केंडेय ऋषि कहते हैं –  पूर्वकाल में देवताओं और असुरों में सौ वर्षों तक घोर संग्राम हुआ था। उसमें असुरोंका स्वामी महिषासुर था और देवताओंके नायक इंद्र थे। उस युद्धमें देवताओं की सेना महाबली असुरों से परास्त हो गयी। सम्पूर्ण देवताओं को जीतकर महिषासुर इंद्र बन बैठा। तब पराजित देवता प्रजापति ब्रह्माजीको आगे करके उस स्थान पर गये...

001. प्रथम अध्याय (दुर्गा सप्तशती हिन्दी पाठ)

श्री दुर्गायै नमः। अथ श्रीदुर्गासप्तशती प्रथम अध्याय  (दुर्गा सप्तशती हिन्दी पाठ) मेघा ऋषि का राजा सुरथ और समाधि को भगवती की महिमा बताते हुए मधु कैटभ वध का प्रसंग सुनाना। विनियोग ॐ - प्रथम चरित्रके ब्रह्मा ऋषि, महाकाली देवता, गायत्री छन्द, नन्दा शक्ति, रक्तदन्तिका बीज, अग्नि तत्त्व और ऋग्वेद स्वरूप है। श्रीमहाकाली देवताकी प्रसन्नता के लिये प्रथम चरित्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ ध्यानम् ॥ महाकाली जी का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है: ध्यान भगवान् विष्णुके सो जानेपर मधु और कैटभको मारनेके लिये कमलजन्मा ब्रह्माजीने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवीका मैं ध्यान करता ( करती) हूँ । वे त्रिनेत्री अपने दस हाथों में खड़ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शङ्ख धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। उनके समस्त अंग दिव्य आभूषणोंसे विभूषित हैं। उनके शरीर की कान्ति नीलमणिके समान है तथा वे दस मुख और दस पैरोंसे युक्त हैं।॥1॥ “ ॐ चंडिकाय नमः ।”  ॐ चण्डीदेवीको नमस्कार है। मार्कण्डेय जी बोले  –  सूर्य के पुत्र सावर्णि, जो आठवें मनु कहे जाते हैं, उनकी उत्पत्ति की कथा व...

मां कात्यायनी पूजा।

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🌷🌷🌷 चैत्र नवरात्रि शुक्ल षष्ठी तिथि 🌷🌷🌷                 08 अक्टूबर  मंगलवार 2024                 मां कात्यायनी पूजा। 🍁🍁🍁 कात्यायनी देवी की कथा  🍁🍁 मां कात्यायनी पूजा एवं भोग प्रसाद  🍁🍁 मां कात्यायनी ध्यान कवच स्तोत्र 🍁🍁श्रीराम कृत कात्यायनी स्तुति:🍁🍁🍁                   (हिन्दी भावार्थ सहित) 🍁🍁कात्यायन ऋषिकृता कात्यायनी देवी स्तुतिः 🍁🍁 🍁🍁पाण्डवाःकृता कात्यायनीस्तुतिः 🍁🍁🍁 🍁🍁🍁माँ कात्यायनी स्तोत्र 🍁🍁🍁🍁 🍁🍁 मां कात्यायनी की आरती 🍁🍁🍁🍁 🍀🌹🍀🌹🍀 कात्यायनी देवी की कथा 🌹🍀🌹🍀 नवरात्रि का छठा दिन कात्यायनी देवी को समर्पित है महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारन इनका नाम कात्यायनी पड़ा । मां दुर्गा अपने छठे स्वरूप में कात्यायनी  के नाम से जानी जाती है। महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक...

क्या दुर्गा पूजा में वेश्या के घर से मिट्टी लाकर मूर्ति बनाने का विधान है ?

- क्या दुर्गा पूजा में वेश्या के घर से मिट्टी लाकर मूर्ति बनाने का विधान है ? -  दुर्गा पूजा में प्रतिमा निर्माण हेतु वेश्या के घर से मिट्टी लाने का आचार कई परम्पराएं पालन करती आ रही हैं। इसको माध्यम बनाकर परम मूढ़ता और मूर्खता से ग्रस्त कुमार्गगामी नरपिशाच गण श्रीदेवी के सन्दर्भ में अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं। सबसे पहले हम वेश्या की तन्त्रोक्त परिभाषा देखेंगे :- कुलमार्गे प्रवृत्ता या सा वेश्या मोक्षदायिनी। एवंविधा भवेद्वेश्या न वेश्या कुलटा प्रिये॥ शिव जी कहते हैं, कि व्यभिचार में रत कुलटा स्त्री को तन्त्र में वेश्या नहीं कहा गया है, अपितु कुलमार्ग में स्थित जो मोक्ष को देने वाली साधिका है, उसे वेश्या कहा गया है।  अब कुलमार्ग क्या है, यह गुरुपरम्परागम्य गूढ़ शाक्ताचार से सम्बंधित है, इसीलिए अधिक नहीं लिखूंगा, किन्तु कुलार्णव तन्त्र में वर्णित सामान्य परिभाषा बताता हूँ :- कुलं कुंडलिनी शक्तिरकुलन्तु महेश्वर:। कुलाकुलस्यतत्वज्ञ: कौल इत्यभिधीयते॥ कुण्डलिनी शक्ति को कुल और परमशिव को अकुल कहा गया है, इन दोनों का रहस्य जानने वाला ब्रह्मवेत्ता ही कौल यानी कुलमार्ग का अनुसरण करने वाल...