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संपूर्ण पूजन विधान

संपूर्ण पूजन विधान महामाया जगज्जननी को शैलराज अर्थात पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के  कारण देवी जगदम्बा 'शैलपुत्री' कहलाईं। माता शैलपुत्री आद्यशक्ति, सर्वतत्त्वमयी  प्रपञ्चरूपा, तत्त्वातीत, नित्या, परमानन्द स्वरूपिणी तथा चराचर जगत् की बीज स्वरूपा हैं। आद्यशक्ति का आश्रय लिये बिना भगवान शिव का आत्मज्ञान नहीं होता। शैलपुत्री भी प्रकाशरूप परम शिव के सानिध्य के बिना प्रकटित नहीं होती। अतः प्रथम नवरात्र में मां शैलपुत्री के इस व्रत में भगवान सदाशिव का भी ध्यान हो जाता है।  शैलपुत्री ने घोर आराधना करके प्राणनाथ रूप में सदाशिव का वरण किया था। यही कारण है कि शैलपुत्री की आराधना से साधक की इच्छाशक्ति में दृढ़ता का आविर्भाव होता है। साधक अपनी अहंकाररहित दृढ़ इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त करता है।  दुर्गा मां का नवरात्र में स्थापना व पूजन नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा की स्थापना व पूजन का विधान है। मां दुर्गा की स्थापना व पूजन के उपरांत उनमें मां शैलपुत्री का आविर्भाव कराकर माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। माता दुर्गा की स्थापना ...

002. द्वितीय अध्याय (दुर्गा सप्तशती हिन्दी पाठ)

अथ श्रीदुर्गासप्तशती द्वितीय अध्याय  ★ देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध।★ ॥विनियोगः॥ ॐ - मध्यम चरित्रके विष्णु ऋषि, महालक्ष्मी देवता, उष्णिक् छन्द, शाकम्भरी शक्ति, दुर्गा बीज, वायु तत्त्व और यजुर्वेद स्वरूप है। श्रीमहालक्ष्मीकी प्रसन्नता लिये मध्यम चरित्रके पाठमें इसका विनियोग है। महिषासुर-मर्दिनी भगवती महालक्ष्मीका का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है: ।। ध्यान।। मैं कमलके आसनपर बैठी हुई प्रसन्न मुखवाली महिषासुर-मर्दिनी भगवती महालक्ष्मीका भजन करता (करती) हूँ, जो अपने हाथोंमें अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड़ग, ढाल, शंख, घण्टा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं। ॐ चण्डीदेवी को नमस्कार है। मार्केंडेय ऋषि कहते हैं –  पूर्वकाल में देवताओं और असुरों में सौ वर्षों तक घोर संग्राम हुआ था। उसमें असुरोंका स्वामी महिषासुर था और देवताओंके नायक इंद्र थे। उस युद्धमें देवताओं की सेना महाबली असुरों से परास्त हो गयी। सम्पूर्ण देवताओं को जीतकर महिषासुर इंद्र बन बैठा। तब पराजित देवता प्रजापति ब्रह्माजीको आगे करके उस स्थान पर गये...

001. प्रथम अध्याय (दुर्गा सप्तशती हिन्दी पाठ)

श्री दुर्गायै नमः। अथ श्रीदुर्गासप्तशती प्रथम अध्याय  (दुर्गा सप्तशती हिन्दी पाठ) मेघा ऋषि का राजा सुरथ और समाधि को भगवती की महिमा बताते हुए मधु कैटभ वध का प्रसंग सुनाना। विनियोग ॐ - प्रथम चरित्रके ब्रह्मा ऋषि, महाकाली देवता, गायत्री छन्द, नन्दा शक्ति, रक्तदन्तिका बीज, अग्नि तत्त्व और ऋग्वेद स्वरूप है। श्रीमहाकाली देवताकी प्रसन्नता के लिये प्रथम चरित्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ ध्यानम् ॥ महाकाली जी का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है: ध्यान भगवान् विष्णुके सो जानेपर मधु और कैटभको मारनेके लिये कमलजन्मा ब्रह्माजीने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवीका मैं ध्यान करता ( करती) हूँ । वे त्रिनेत्री अपने दस हाथों में खड़ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शङ्ख धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। उनके समस्त अंग दिव्य आभूषणोंसे विभूषित हैं। उनके शरीर की कान्ति नीलमणिके समान है तथा वे दस मुख और दस पैरोंसे युक्त हैं।॥1॥ “ ॐ चंडिकाय नमः ।”  ॐ चण्डीदेवीको नमस्कार है। मार्कण्डेय जी बोले  –  सूर्य के पुत्र सावर्णि, जो आठवें मनु कहे जाते हैं, उनकी उत्पत्ति की कथा व...